उत्पत्ति 9
“फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृथ्वी में भर जाओ।” परमेश्वर ने लगातार भरने की बात करता है। क्योंकि मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप में और समानता में बनाया गया है। परमेश्वर के इच्छा, योजना के अनुसार हम एक दूसरे को प्रेम करते हुए परमेश्वर को भी प्रेम करने का जीवन से पूरे पृथ्वी में भर जाए तो कितना सुन्दर वातावरण हुआ होगा। आज भी परमेश्वर इस बात को पूरा करना चाहता है कि परमेश्वर को अपने जीवन के राजा समझने वाला परमेश्वर के राज्य के प्रजा को खोजता है और पृथ्वी परमेश्वर के प्रजा से भर जाए।
नूह ने अपनी किसानी का फल दाख की बारी से लिए हुए दाखमधु को पीकर मतवाला होकर अपने तम्बू के भीतर नंगा हो गया है। उस समय में उस के पुत्र हम ने नंगा हुआ पिता नूह को देख लिया और उस बातों को अपने भाईयों को बता दिया है। उस के बाद शेम और येपेत ने पीछे मुढ़ कर पिता को कपड़ा से ढाँप दिया है। हमारे जीवन में भी दूसरे का कमजोर को देखने का अवसर अक्सर होता है। ग़लती तो नूह का है पर हम तो क्या करना चाहिए थे? जैसे शेम और येपेत ने उस के कमजोर को ढाँप दिया है वैसे ही हम उस के कमजोर को ढाँपना है। बदला लेने का काम, न्याय करने का काम, सुधारने का काम परमेश्वर का काम है। हम बड़े सावधानी से दूसरे का कमजोर पर नज़र रखना है। हमारे पहचान दूसरे को नीछे गिराकर नहीं उठ जाता है। हमारे पहचान दूसरे के साथ तौलने से नहीं होता है। हमारे असली पहचान परमेश्वर के साथ संबंधित के द्वारा होता है। हमारे पहचान यीशु मसीह के बलिदान से होता है। यीशु के प्रेम को स्वीकर करने से होता है। इस लिए यीशु ने कहा, “तू अपने भाई की आँख के तिनके को क्यों देखता है, और अपनी ही आँख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? जब तू अपनी ही आँख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपने भाई से कैसे कह सकता है, ‘हे भाई; ठहर जा तेरी आँख से तिनके को निकाल दूँ’? हे कपटी, पहले अपनी आँख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आँख में है, उसे भली भाँति देखकर निकाल सकेगा।”(लूका 6:41-42) यीशु मसीह के शिक्षा हमेशा यह है कि अपने की ओर ध्यान दें। हम अपने खुद को भी नहीं सँभल सकते हैं अपने खुद का जीवन में अपने खुद का निर्णय के साथ ही बदलाव ले आना चाहते है फिर भी नहीं हो सकता है पर कैसे दूसरों के जीवन में परिवर्तन ले आ सकेगा? जब तक पवित्र आत्मा मनुष्य का जीवन में काम नहीं करेगा तो मनुष्य का जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आ सकता है।
हम अपने को पवित्र आत्मा की ओर सौंप देना है और दूसरे का सुधार से पहले अपने परमेश्वर के अधीन ले आने की बातों पर ध्यान देना है।
प्रभु!!!
दूसरे का कमजोर पर नज़र नहीं रखने वाला जीवन होने दें सिर्फ यीशु मसीह की ओर नज़र रखने वाला जीवन होने दें ताकि हम अपने असली पहचान को समझ सकें।
No comments:
Post a Comment