Sunday, 3 February 2019

प्रेम क्या है

उत्पत्ति 7
जब पृथ्वी परमेश्वर के नज़र मे पोप से भर गया तो परमेश्वर ने अपने से बनाए हुए सारे मनुष्य समेत सारे जीव जन्तुओं को  नष्ट करने के लिए निर्णय लिया है, एक बात याद रखना है कि मनुष्य परमेश्वर के समाने पाप करने के समय में भले और बुरे की ज्ञान की पेड़ के फल को खा लिए है अर्थात् भला और बुरा को मनुष्य स्वयं अपने सुविधा के अनुसार निर्णय लेना चाहता है पर पृथ्वी को बनाने वाला परमेश्वर है सिर्फ उन ही के द्वारा ही भला और बुरा को तय कर सकता है। परमेश्वर के निर्णय के साथजो जो भूमि पर थे सब पृथ्वी पर से मिट गए; केवल नूह, और जितने उसके संग जहाज़ में थे, वे ही बच गए।तो जो प्रण जहाज़ में थे वे  कैसे बच गए है?
तब यहोवा ने नूह से कहा, “तू अपने सारे घराने समेत जहाज में जा; क्योंकि मैं ने इस समय के लोगों में से केवल तुझी को अपनी दृष्‍टि में धर्मी पाया है।” 
तो परमेश्वर का नज़र में धर्मी कैसे  पाय है?
यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।”, “और जो गए, वे परमेश्‍वर की आज्ञा के अनुसार सब जाति के प्राणियों में से नर और मादा गए।” 
नूह के जल-प्रलय को देखते हुए हमारे जीवन मे सिर्फ़ एक ही सवाल बच जाता है कि हम परमेश्वर के बतों के अनुसार काम किय है कि नहीं? मनुष्य अपने विचार के अनुसार, अपने सभ्यता के अनुसार, अपने वातावरण के अनुसार अच्छा काम कर सकताहै पर न्याय परमेश्वर का है। और परमेश्वर का न्याय अपने लिखा हुआ वचन के अनुसार होता है  वह यह है कितू अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्‍ति के साथ प्रेम रखना। और ये आज्ञाएँ जो मैं आज तुझ को सुनाता हूँ वे तेरे मन में बनी रहें;” (व्यवस्थाविवरण 6:5-6)
परमेश्वर प्रेम है इसलिए हम परमेश्वर के प्रेम करना है। प्रेम के बारे में अलग अलग परिभाषा है। प्रभु यीशु मसीह ने प्रेम का परिभाषा को इस तरह बताया है  “जिस के पास मेरी आज्ञाएँ हैं और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है;” (यूहन्ना 14:21) यीशु मसीह भी परमेश्वर को अपने प्रण को क्रूस पर चढा़ ने परमेश्वर के बात को सुन लिया है। अर्थात् दूसरे का बात को सुनना प्रेम है। प्रेम एक तरह से पूरा नहीं हो सकता है जहाँ सच्चा प्रेम है तो वहाँ दोनों तरह होता है। हम परमेश्वर का आज्ञा को मानते हुए परमेश्वर की ओर प्रेम को प्रकट करते है  तो परमेश्वर का प्रेम हमारे जीवन में कैसे प्रकट होता? परमेश्वर हमारे बातों को कैसे  सुनता है? “मैं तुम से सच सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ भी माँगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं माँगा; माँगो, तो पाओगे ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।”(यूहन्ना 16:23-24) हाँ, परमेश्वर मेरे बातों को प्रार्थना के मध्यम से सुनता है। परमेश्वर प्रार्थना के उत्तर के द्वारा हमारी ओर अपने प्रेम को प्रकट करता है। 
प्रेम दूसरे को आदर देते हुए दूसरे का बात को सुनना है। इसलिए परमेश्वर ने हमारे बीच में वचन अर्थात् बाइबल को दिया है। बाइबल के वचन के द्वारा पमरेश्वर का बात को मान सकता है और बाइबल के अनुसार दूसरों के बातों को भी सुन सकता है। वचन और प्रार्थना प्रेम का साधन है। 

प्रभु!!!

आप से विनती करता हूँ कि मेरे जीवन हमेशा वचन और प्रार्थना के साथ होने दें। आप के प्रेम में बना रहना चाहता हूँ। मुझ पर शक्ति दे ताकि हम आप के वचनों पर चल सकें। आमीन    

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