Wednesday, 8 April 2015

गुड फ्रईडे

उस ने उस आनेवाले जगत को जिस की चर्चा हम कर रहे हैं,
स्वर्गदूतों के आधीन न किया। वरन् किसी ने कहीं, यह गवाही दी है,
मनुष्य क्या हैं कि तू उस की सुधि लेता है?
या मनुष्य का पुत्र क्या है, कि तू उस की चिन्ता करता है?
तू ने उसे स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया;
तू ने उस पर महिमा और आदर का मुकुट रखा,
और उसे अपने हाथों के कामों पर अधिकार दिया।
तू ने सब कुछ उसके पांवों के नीचे कर दिया।
इसलिये जब कि उस ने सब कुछ उसके आधीन कर दिया,
तो उस ने कुछ भी रख न छोड़ा, जो उसके आधीन न हो।
पर हम अब तक सब कुछ उसके आधीन नहीं देखते।
पर हम यीशु को जो स्वर्गदूतों से कुछ ही कम किया गया था,
मृत्यु का दुःख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट  परिने हुए देखते हैं,
ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से वह हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखे।
क्योंकि जिस के लिये सब कुछ है, और जिस के द्वारा सब कुछ है,
उसे यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रों को महिमा में पहुंचाए,
तो उन के उद्धार के कर्ता को दुख उठाने के द्वारा सिद्ध करे।
क्योंकि पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जाते हैं, सब एक ही मूल से हैं;
इसी कारण वह उन्हें भाई कहने से नहीं लजाता।
वह कहता है,
मैं तेरा नाम अपने भाइयों को सुनाऊंगा;
सभा के बीच में मैं तेरा भजन गाऊंगा।
और फिर यह,
मैं उस पर भरोसा रखूंगा।
और फिर यह,
देख, मैं उन लड़कों सहित जिसे परमेश्वर ने मुझे दिए।
इसलिये जब कि लड़के मांस और लोहू के भागी हैं,
तो वह आप भी उन के समान उन का सहभागी हो गया,
ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली थी,
अर्थात् शैतान को निकम्मा कर दे।
और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फँसे थे, उन्हें छुड़ा ले।
क्योंकि वह तो स्वर्गदूतों को नहीं बरन अब्राहम के वंश को संभालता है।
इस कारण उसको चाहिए था,
कि सब बातों में अपने भाइयों के समान बने;
जिस से वह उन बातों में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं,
एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बने
ताकि लोगों के पापों के लिये प्रायश्चित करे।
क्योंकि जब उस ने परीक्षा की दशा में दुख उठाया,
तो वह उन की भी सहायता कर सकता है,
जिनकी परीक्षा होती है।
(इब्रानियों2:5-18)

उपरोक्त पाठ में हम देख सकते है कि यीशु मसीह के दुःख उठने से हम्हें निम्म बातों को हमारे जीवन में अपना सकते हैं।

1  1.  हम यीशु मसीह के भाई हो गया।(11)2.  हमारे जीवन में शैतान निकम्मा हो गया।(14)3.  हम मृत्यु के दासत्व से मुक्ति मिला।(15)4.  हम्हें एक सहायक मिला(18)


यीशु मसीह  यह काम को पुरा करने के लिये दो तरीके को अपनाया है। वह हमारे सोचसे बिल्कुल अलग है। पहला यीशु मसीह मृत्यु का दुःख उठाने का मार्ग लिया है। यह यीशु मसीह परमेश्वर के वचन के अनुसार, परमेश्वर के आज्ञाके अनुसार हुआ है।(फिलि2:8) उन दिनों में क्रुस पर सिर्फ यीशु मसीह ही नहीं मरा बल्कि बहुत सारे लोग क्रुस का साजा मिलकर अपने प्राण त्यागा है। पर दोनो के बीच में यह अंतर है कि यीशु आज्ञाकारी होकर, अन्य लोगो आज्ञा को उल्लघन करने से। इस कारण यीशु मसीह के नाम में शक्ति है, महीमा है। दूसरा यीशु मसीह अपने भाइयों के समान बन कर यह काम को पुरा कर दिया है।(17) इसमें परमेश्वर के असिम अनुग्रह को हम देख सकते हैं। परमेश्वर ने मनुष्य को अपने समानता में बनाया है। और मनुष्य अपने पाप के चलते नष्ट हो गया है। उस दशा में भी यीशु हमारे समान बनकर अपना प्रेम को प्रगट किया है। यह दो बाते मसीहियों के जीवन में बहुत महत्वपुर्ण सिद्धांत है। क्योंकि यीशु मसीह इस मार्ग से हम्हें परमेश्वर से मिलवाया है। क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया कि जैसा मैं ने तुम्हारे  साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।(यूहन्ना 13:15) कितना अनोखा बात इस में है। प्रभु ने हम को यह आज्ञा देते है इसका मतलब हमारे अंदर में इसको पुरा करने की क्षमता भी है जो पवित्र आत्मा के द्वारा प्रदान होता है। हम पवित्र आत्मा के द्वारा यीशु मसीह के समान जीवन जी सकते हैं। अगर हम यीशु मसीह के जैसा जीवन जीएँगे तो हमारे जीवन आनन्द और आशा से परिपुर्ण हो जाते हैं। जब हम दुसरे के लिये सच्चा मन से सेवा करने के लिये तैयारी हो जाता है तो खुशी होता है। यीशु मसीह भी बहुत से पुत्रों को महिमा में पहँचाने के लिये दुःख उठाना अच्छा लगा है। मेरा दुःख उठाने से दूसरे लोग आनन्द मिलता है और वही आनन्द मेरे जीवन को आगे की ओर ले जाता है। यीशु मसीह ने यह सब बातों को परमेश्वर के वचन के अनुसार किया है जो वचन सृष्टि के तरिके थे। वचन के अनुसार सब कुछ हुआ है। मनुष्य अपने जीवन में किसी न किसी तरह के आशा के साथ ही जीते हैं। मनुष्य जीवन में सब से मुश्किल समय यह है जब आशाहिन के समय। इसलिये कभी शिक्षा पर, कभी धन पर, कभी रिश्तेदारो पर लेकिन ज्यादातर यह संसारिक आशा हम्हें धोखा देते हैं। पर हम परमेश्वर के वचन के अनुसार यीशु मसीह के जैसा जीना शुरू होगा तो यह कभी हम को धोखा नहीं दे सकता है। यह आशा पुर्ण जीवन हमारे पास होना है यह आशा को हम्हें देने के लिये यीशु मसीह दुःख उठाया है। यीशु के दुःख उठाने से सब से उत्तम फल हम ही है। और यीशु मसीह हम्हें बताते हैं कि जाकर बहुत फल लाओं।


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