क्या हम विश्वास में धोखा नहीं खाते हैं?
रोमियों 5:1-11 अतः जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें। जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें। केवल यही नहीं, बरन हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है। और आशा से लज्जा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है। क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा। किसी धर्मी जन के लिये कोई मरे, यह तो दुर्लभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का भी हियाव करे। परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। सो जब कि हम, अब उसके लोहूं के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे? क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे? और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जिस के द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर में आनन्दित होते हैं।।
रोमियो की पत्री के 1अध्याय से लेकर 4वीं अध्याय तक हम दखे हैं कि मानव जाति पाप में फास गया है। 3:23में लिखा है कि ‘सब ने पाप किया’ इस पाप के चलते मानव जाति के पास नाना प्रकर की समस्या आ गया है जो आज हम जेल रहे हैं। ‘पाप’ का अर्थ या परिभाषा के बारे में बहुत लोगों ने कहा दिया है। उल्लघन करना, निशाना झुक जाना, अयोग्य होना, तोल में कम होना अदि। फिर भी छोता सा शब्दों में बाताना चाहूँगा ताकि हम अपने आप को देख सके और परमेश्वर के अनुग्रह के मुल्य को समझ सके। परमेश्वर ने दुनिया के सृष्टि करने के बाद मनुष्य को अपने स्वरूप में और समानता में रचाया और उन लोगों को अधिकार, आशिष और भोजन वास्तु दिया गया है। जो कुछ परमेश्वर के पास है वह मनुष्यों को दिया गया है क्योंकि परमश्वर प्रेम है। पर मनुष्य और परमेश्वर के बिच में एक अंतर तो जरूर है। वह यह है कि मनुष्य अश्रित जीवन जीना है परमेश्वर स्वयं। अश्रीय जीवन को हम इस तरह से समझ सकते है कि साधारण परिवार में बैठा सियान हो जाता है पिता जी ने अपना अधिकार को बैठे के पास छोर देते हैं और बैठे के पीछे से उस को समर्थान देते है। इसका मतलब यह नहीं है कि बैठे अपने पास सारा अधिकार आ गया है तो अपने मन मर्जी से काम चलाएँगे। काम तो बैठा कर रहे है पुरे अधिकार के साथ पर पिता जी से सालहा ले कर। यह सही परिवार है अधिकतर लोग ऐसा परिवार को चाहते हैं। ठीक उस तरह परमेश्वर भी मानव जाति के साथ संबंध रखना चाहते थे। पर मनुष्य इस अश्रीय जीवन को छोड़ कर स्वार्थी जीवन में आ गया। मनुष्य अपना मनमानी जीवन जीना चाहते थे, मनुष्य अपना पहचान को परमेश्वर के द्वारा नहीं अपने आपसे बनना चाहते थे, मनुष्य किसी दुसरे के सामनता में नहीं अलग रहना चाहते थे। इसलिये जब समय आ गया परमेश्वर के आज्ञाको उल्लघन कर के स्वार्थी जीवन में आ गया है यही पाप है। इस कारण मानव जाति के पास संकट और क्लेश, कमजोर, बीमार, व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन, मूर्तिपूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा अदि आने लागे और अखिरि में मृत्यु का दंड पाते है। परमेश्वर ने मनुष्य के बारे में हजारों वर्ष पहले घोषण किया गया है कि उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है।
रोमियों के पत्री 3:10-18 में मानव जाति के परिस्थिति को इस तरह से लिखा गया है कि,
जैसा लिखा है,
कि कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजनेवाला नहीं।
सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए, कोई भलाई करनेवाला नहीं, एक भी नहीं।
उन का गला खुली हुई कब्र है: उन्हीं ने अपनी जीभों से छल किया है: उन के होठों में सापों का विष है।
और उन का मुंह श्राप और कड़वाहट से भरा है।
उन के पांव लोहू बहाने को फुर्तीले हैं।
उन के मार्गों में नाश और क्लेश है।
उन्हों ने कुशल का मार्ग नहीं जाना।
उन की आंखों के साम्हने परमेश्वर का भय नहीं।
यह मनुष्य का परिस्थिति और हल है। जब हम निर्बल ही थे, जब हम पापी ही थे, जब हम बैरी होने की दशा में थे, तोभी परमेश्वर ने हमारे लिये अपना एकलौते पुत्र यीशु मसीह को हमारे लिये भेजा गया है। और हम लोगों को विश्वास द्वारा धर्मी ठहरने का सधान बना दिया। विश्वास से। विश्वास करना इतना मुश्किल नहीं है, कठिन नहीं है। समस्या इस में है कि मनुष्य स्वर्थी जीवन में फाँसे हुए थे इसलिये किसी हल में भी दुसरे को या दुसरे की बात को स्वीकार करने असान नहीं है।
विश्वास करना है, समझना नहीं, प्रयास करना नहीं, अगल-बगल के लोगों को देखना नहीं। मनुष्य के पास कोई दुसरा रास्ता नहीं है उद्धार पाने के लिये क्योंकि मनुष्य परमेश्वर के बात को नहीं माना, इसलिये फिर से अपने जगहों में जाना है तो उसके बात को मानना है वह है यीशु मसीह।
विश्वास से उद्धार पाते है इसलिये निश्चिन्त हो जाता है। मनुष्य कितना निर्बल है हम सब अच्छी तरह जानता है। बास एक मिनट के अंदर में हमारे मन कितना बदल जाता है। अगर हमारा उद्धार हमारी ओर से होता है तो कितना समस्या खरा होता है। परमेश्वर की ओर भक्ति भावना भी कितना उचलता है जब हमारे जीवन अपने इच्छा के अनुसार चलाता है तो खुशी हो कर उसकी स्तुति करते है पर अपने मन की चाह को पुरा नहीं हो जाता है तो परमेश्वर की ओर क्या नहीं करता है वह सिर्फ हम ही जानता है।
इसलिये परमेश्वर ने हमारे उद्धार के लिये अपने तरह से इंतजाम करके रख दिया है। वह है यीशु मसीह, जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। विश्वास करना है, बास स्वीकार करना है परमेश्वर के प्रेम से सारा चिजे तैयार हो चुका है। हम परमेश्वर से मेल खा सकते है। मेल खा कर परमेश्वर ने सृष्टि के समय में मनुष्य के साथ करना चाहते थे वह ही बातों को फिर से कर सकते है। परमेश्वर हम्हें सिर्फ अपने पापों से बचाया उन्होंने हम्हें अपने बैठा ठहरा गया है।
रोमियों की पत्री 5अध्याय 1सें लेकर 11वों पदों के बीच में हम्हें पाया जाता है कि विश्वास से धर्मी ठहर जाता है, विश्वास के द्वारा परमेश्वर से मेल हो जाता है, परमेश्वर से मेल खाने से हमारे जीवन में आनन्द होता है। धर्मी ठहर जाना या परमेश्वर से मेल खाना हमारे आँखों में नहीं दिखाई देते हैं। पर जब हमारे जीवन परमेश्वर में आनन्द होते हैं तो पाता चलता है कि हमारे अंदर मे परिवर्तन हुआ है। यह आनन्द जब हम क्लेशों में भी हो तो फिर भी हम्हें आनन्द जीवन की ओर ले जाता है क्योंकि उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है, अर्थात् उन्हीं लिये जो उसकी इच्छा के अनुसाह बुलाए हुए है।
मेरे लिये यह बात बचपन से ही हम को लेकर आया था कि हम मसीह है तो आनन्द ही होना है। इसलिये मैं हमेशा खुशी जीवन जीने के लिये कोशिश करता था और ऐसा भी होता था पर इसमें भी कुछ भ्रम आने लगे है। मैं मसीह के लिये जीना चाहता था। मैं वचन के लिये जीना चाहता था। पर यह हो नहीं सकता था। जितना मेरे द्वारा कोशिश करते थे उतना ही मेरे मन की गहरों में कुछ ना कुछ खलिपन होने लगे। इस खालिपन को पुरा करने के लिये और प्रयास करता रहा फिर भी नहीं हो रहा था। लेकिन एक समय मैं अपने जीवन में यीशु मसीह को ग्रहण करने के बाद में यीशु मसीह के लिये नहीं जीता है यीशु मसीह मेरे अंदर में जीना शुरू हुआ तब से मेरे जीवन परमेश्वर में आनन्द होता रहता है। यीशु मसीह के लिये, वचन के लिये जीने का प्रयास करने की जरूरत नहीं हुआ। मसीही है इसलिये ऐसा होना है, मसीही है इसलिये यह नहीं करना है, मसीही है इसलिये... ऐसा कानुन नियमों से आजादी हो गया है। सहीं शांति और आनन्द मेरे जीवन में आ गया है।
धरती पर नाना प्रकर के नकली मिलता है नकली नोट, नकली प्रमण पत्र यहाँ तक नकली सास सासुलाल भी मिलता है और हम लोग कभी कभी ऐसा नकली से धोखा भी खाते हैं। फिर भी हमारे जीवन चलता हैं। पर हमारे विश्वास में धोखा खायेगा तो क्या होगा। इस में द्वारा अवसर नहीं मिलता है। जैसे मत्ती सुसमाचार 25 अध्याय में मिले वाले बाई ओर में खाड़ा होकर यीशु मसीह से बात करते हैं। वह लोग यीशु मसीह को जानते थे और उस के लिये जीया होगा पर उसके अंदर में यीशु मसीह नहीं थे। यह लोग अपने आप को धोखा खिलाया है कि हम यीशु मसीह के लिये जी रहे हैं। पर यीशु मसीह उसके अंदर नहीं थे।
यीशु मसीह आज भी हम से यह बात कह रहा है देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि को ई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और मेरे साथ।
हम यीशु मसीह पर विश्वास करना है उसके कामों को जो मेरे लिये किया है स्वाकार करना है और उस पर भारोसा रखना है। यीशु मसीह के लिये जीना नहीं यीशु मसीह को मेरे अंदर में जीने देना है।
रोमियों 5:1-11 अतः जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें। जिस के द्वारा विश्वास के कारण उस अनुग्रह तक, जिस में हम बने हैं, हमारी पहुंच भी हुई, और परमेश्वर की महिमा की आशा पर घमण्ड करें। केवल यही नहीं, बरन हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है। और आशा से लज्जा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है। क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिये मरा। किसी धर्मी जन के लिये कोई मरे, यह तो दुर्लभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का भी हियाव करे। परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। सो जब कि हम, अब उसके लोहूं के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा क्रोध से क्यों न बचेंगे? क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे? और केवल यही नहीं, परन्तु हम अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा जिस के द्वारा हमारा मेल हुआ है, परमेश्वर में आनन्दित होते हैं।।
रोमियो की पत्री के 1अध्याय से लेकर 4वीं अध्याय तक हम दखे हैं कि मानव जाति पाप में फास गया है। 3:23में लिखा है कि ‘सब ने पाप किया’ इस पाप के चलते मानव जाति के पास नाना प्रकर की समस्या आ गया है जो आज हम जेल रहे हैं। ‘पाप’ का अर्थ या परिभाषा के बारे में बहुत लोगों ने कहा दिया है। उल्लघन करना, निशाना झुक जाना, अयोग्य होना, तोल में कम होना अदि। फिर भी छोता सा शब्दों में बाताना चाहूँगा ताकि हम अपने आप को देख सके और परमेश्वर के अनुग्रह के मुल्य को समझ सके। परमेश्वर ने दुनिया के सृष्टि करने के बाद मनुष्य को अपने स्वरूप में और समानता में रचाया और उन लोगों को अधिकार, आशिष और भोजन वास्तु दिया गया है। जो कुछ परमेश्वर के पास है वह मनुष्यों को दिया गया है क्योंकि परमश्वर प्रेम है। पर मनुष्य और परमेश्वर के बिच में एक अंतर तो जरूर है। वह यह है कि मनुष्य अश्रित जीवन जीना है परमेश्वर स्वयं। अश्रीय जीवन को हम इस तरह से समझ सकते है कि साधारण परिवार में बैठा सियान हो जाता है पिता जी ने अपना अधिकार को बैठे के पास छोर देते हैं और बैठे के पीछे से उस को समर्थान देते है। इसका मतलब यह नहीं है कि बैठे अपने पास सारा अधिकार आ गया है तो अपने मन मर्जी से काम चलाएँगे। काम तो बैठा कर रहे है पुरे अधिकार के साथ पर पिता जी से सालहा ले कर। यह सही परिवार है अधिकतर लोग ऐसा परिवार को चाहते हैं। ठीक उस तरह परमेश्वर भी मानव जाति के साथ संबंध रखना चाहते थे। पर मनुष्य इस अश्रीय जीवन को छोड़ कर स्वार्थी जीवन में आ गया। मनुष्य अपना मनमानी जीवन जीना चाहते थे, मनुष्य अपना पहचान को परमेश्वर के द्वारा नहीं अपने आपसे बनना चाहते थे, मनुष्य किसी दुसरे के सामनता में नहीं अलग रहना चाहते थे। इसलिये जब समय आ गया परमेश्वर के आज्ञाको उल्लघन कर के स्वार्थी जीवन में आ गया है यही पाप है। इस कारण मानव जाति के पास संकट और क्लेश, कमजोर, बीमार, व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन, मूर्तिपूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म, डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा अदि आने लागे और अखिरि में मृत्यु का दंड पाते है। परमेश्वर ने मनुष्य के बारे में हजारों वर्ष पहले घोषण किया गया है कि उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है।
रोमियों के पत्री 3:10-18 में मानव जाति के परिस्थिति को इस तरह से लिखा गया है कि,
जैसा लिखा है,
कि कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।
कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजनेवाला नहीं।
सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गए, कोई भलाई करनेवाला नहीं, एक भी नहीं।
उन का गला खुली हुई कब्र है: उन्हीं ने अपनी जीभों से छल किया है: उन के होठों में सापों का विष है।
और उन का मुंह श्राप और कड़वाहट से भरा है।
उन के पांव लोहू बहाने को फुर्तीले हैं।
उन के मार्गों में नाश और क्लेश है।
उन्हों ने कुशल का मार्ग नहीं जाना।
उन की आंखों के साम्हने परमेश्वर का भय नहीं।
यह मनुष्य का परिस्थिति और हल है। जब हम निर्बल ही थे, जब हम पापी ही थे, जब हम बैरी होने की दशा में थे, तोभी परमेश्वर ने हमारे लिये अपना एकलौते पुत्र यीशु मसीह को हमारे लिये भेजा गया है। और हम लोगों को विश्वास द्वारा धर्मी ठहरने का सधान बना दिया। विश्वास से। विश्वास करना इतना मुश्किल नहीं है, कठिन नहीं है। समस्या इस में है कि मनुष्य स्वर्थी जीवन में फाँसे हुए थे इसलिये किसी हल में भी दुसरे को या दुसरे की बात को स्वीकार करने असान नहीं है।
विश्वास करना है, समझना नहीं, प्रयास करना नहीं, अगल-बगल के लोगों को देखना नहीं। मनुष्य के पास कोई दुसरा रास्ता नहीं है उद्धार पाने के लिये क्योंकि मनुष्य परमेश्वर के बात को नहीं माना, इसलिये फिर से अपने जगहों में जाना है तो उसके बात को मानना है वह है यीशु मसीह।
विश्वास से उद्धार पाते है इसलिये निश्चिन्त हो जाता है। मनुष्य कितना निर्बल है हम सब अच्छी तरह जानता है। बास एक मिनट के अंदर में हमारे मन कितना बदल जाता है। अगर हमारा उद्धार हमारी ओर से होता है तो कितना समस्या खरा होता है। परमेश्वर की ओर भक्ति भावना भी कितना उचलता है जब हमारे जीवन अपने इच्छा के अनुसार चलाता है तो खुशी हो कर उसकी स्तुति करते है पर अपने मन की चाह को पुरा नहीं हो जाता है तो परमेश्वर की ओर क्या नहीं करता है वह सिर्फ हम ही जानता है।
इसलिये परमेश्वर ने हमारे उद्धार के लिये अपने तरह से इंतजाम करके रख दिया है। वह है यीशु मसीह, जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। विश्वास करना है, बास स्वीकार करना है परमेश्वर के प्रेम से सारा चिजे तैयार हो चुका है। हम परमेश्वर से मेल खा सकते है। मेल खा कर परमेश्वर ने सृष्टि के समय में मनुष्य के साथ करना चाहते थे वह ही बातों को फिर से कर सकते है। परमेश्वर हम्हें सिर्फ अपने पापों से बचाया उन्होंने हम्हें अपने बैठा ठहरा गया है।
रोमियों की पत्री 5अध्याय 1सें लेकर 11वों पदों के बीच में हम्हें पाया जाता है कि विश्वास से धर्मी ठहर जाता है, विश्वास के द्वारा परमेश्वर से मेल हो जाता है, परमेश्वर से मेल खाने से हमारे जीवन में आनन्द होता है। धर्मी ठहर जाना या परमेश्वर से मेल खाना हमारे आँखों में नहीं दिखाई देते हैं। पर जब हमारे जीवन परमेश्वर में आनन्द होते हैं तो पाता चलता है कि हमारे अंदर मे परिवर्तन हुआ है। यह आनन्द जब हम क्लेशों में भी हो तो फिर भी हम्हें आनन्द जीवन की ओर ले जाता है क्योंकि उनके लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है, अर्थात् उन्हीं लिये जो उसकी इच्छा के अनुसाह बुलाए हुए है।
मेरे लिये यह बात बचपन से ही हम को लेकर आया था कि हम मसीह है तो आनन्द ही होना है। इसलिये मैं हमेशा खुशी जीवन जीने के लिये कोशिश करता था और ऐसा भी होता था पर इसमें भी कुछ भ्रम आने लगे है। मैं मसीह के लिये जीना चाहता था। मैं वचन के लिये जीना चाहता था। पर यह हो नहीं सकता था। जितना मेरे द्वारा कोशिश करते थे उतना ही मेरे मन की गहरों में कुछ ना कुछ खलिपन होने लगे। इस खालिपन को पुरा करने के लिये और प्रयास करता रहा फिर भी नहीं हो रहा था। लेकिन एक समय मैं अपने जीवन में यीशु मसीह को ग्रहण करने के बाद में यीशु मसीह के लिये नहीं जीता है यीशु मसीह मेरे अंदर में जीना शुरू हुआ तब से मेरे जीवन परमेश्वर में आनन्द होता रहता है। यीशु मसीह के लिये, वचन के लिये जीने का प्रयास करने की जरूरत नहीं हुआ। मसीही है इसलिये ऐसा होना है, मसीही है इसलिये यह नहीं करना है, मसीही है इसलिये... ऐसा कानुन नियमों से आजादी हो गया है। सहीं शांति और आनन्द मेरे जीवन में आ गया है।
धरती पर नाना प्रकर के नकली मिलता है नकली नोट, नकली प्रमण पत्र यहाँ तक नकली सास सासुलाल भी मिलता है और हम लोग कभी कभी ऐसा नकली से धोखा भी खाते हैं। फिर भी हमारे जीवन चलता हैं। पर हमारे विश्वास में धोखा खायेगा तो क्या होगा। इस में द्वारा अवसर नहीं मिलता है। जैसे मत्ती सुसमाचार 25 अध्याय में मिले वाले बाई ओर में खाड़ा होकर यीशु मसीह से बात करते हैं। वह लोग यीशु मसीह को जानते थे और उस के लिये जीया होगा पर उसके अंदर में यीशु मसीह नहीं थे। यह लोग अपने आप को धोखा खिलाया है कि हम यीशु मसीह के लिये जी रहे हैं। पर यीशु मसीह उसके अंदर नहीं थे।
यीशु मसीह आज भी हम से यह बात कह रहा है देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि को ई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और मेरे साथ।
हम यीशु मसीह पर विश्वास करना है उसके कामों को जो मेरे लिये किया है स्वाकार करना है और उस पर भारोसा रखना है। यीशु मसीह के लिये जीना नहीं यीशु मसीह को मेरे अंदर में जीने देना है।
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